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प्रेमियों, कौन हैं श्याम बाबा? किस कुल में उत्पन्न हुए? क्यों कलयुग के प्रधान देव कहलाये? उन्हें मोरवीनंदन क्यों कहा जाता है? ऐसे कई जिज्ञाषा भरे प्रश्न श्यामबाबा खाटूवाले के विषय में श्याम भक्तो के मन में उभरते है… श्री मोरवीनंदन खाटूश्याम जी की शास्त्रसम्मत दिव्य कथा का वर्णन स्वयं भगवान श्री वेदव्यास जी ने स्कन्द पुराण के “माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड “कौमारिका खंड” में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से किया है, आइये हम सब भी उस दिव्य कथा का रसास्वादन करे…
श्रीमद्भागवत गीता के मतानुसार जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब भगवान् साकार रूप धारण कर दीन भक्तजन, साधु एवं सज्जन पुरुषों का उद्धार तथा पाप कर्म में प्रवृत रहने वालो का विनाश कर सधर्म की स्थापन किया करते है… उनके अवतार ग्रहण का न तो कोई निश्चित समय होता है और न ही कोई निश्चित रूप धर्म की हानिऔर अधर्म की वृद्धि को देखकर जिस समय वे अपना प्रगट होना आवश्यक समझते है, तभी प्रगट हो जाते है…
ऐसे कृपालु भगवान के पास अपने अनन्य भक्त के लिए कुछ भी अदेय नहीं होता… परन्तु सच्चा भक्त कोई विरला ही मिलता है… यद्यपि उससच्चिदानंद भगवान के भक्तो की विभिन्न कोटिया होती है, परन्तु जो प्राणी संसार, शरीर तथा अपने आपको सर्वथा भूलकर अनन्य भाव से नित्य निरंतर केवल श्री भगवान में स्थिर रहकर हेतुरहित एवं अविरल प्रेम करता है, वही श्री भगवान को सर्वदा प्रिय होता है… श्री भगवान के भक्तो की इसी कोटि में पाण्डव कुलभूषण श्री भीमसेन के पोत्र एवं महाबली घटोत्कच के पुत्र, मोरवीनंदन वीर शिरोमणि श्री बर्बरीक भी आते है…
पाण्डुनंदन महाबली भीम ने हिडिम्बा से गंधर्व विवाह रचाया था… हिडिम्बा के गर्भ से वीर घटोत्कच नामक शूरवीर योद्धा का जन्म हुआ था… कालांतर में घटोत्कच अपनी माता हिडिम्बा की आज्ञा से अपने महाबली पिता भीम, श्री कृष्ण, युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव आदि के दर्शनार्थ इन्द्रप्रस्थ आया…
भगवान श्री कृष्ण इस पराक्रमी वीर घटोत्कच को देखकर, प्रसन्न हो पांडवो से बोले - “इस युवा योद्धा के विवाह का शीघ्र प्रबंध किया जाये”
इस पर पांडवो ने कहा- “भगवन! कहाँ और कैसे सम्बन्ध तय हो, यह आप ही सुनिश्चित करे…”
भगवन श्री कृष्ण ने कहा - “इसके समान ही अत्यंत बुद्धिमान एवं वीर श्रेष्ठ मूर दैत्य की अति सुन्दर बाला कामकटंककटा, जो मूर दैत्य की औरस पुत्री है, इस सुभट योद्धा के लिए वही अनुकूल स्त्री है… घटोत्कच ही अपने विवेक द्वारा उसे शास्त्र विद्या में परास्त कर सकता है… मैं घटोत्कच को स्वयं दीक्षित कर उस मृत्यु स्वरूप नारी को वरण करने हेतु भेजूँगा…”
श्री कृष्ण के हाथो दीक्षित होकर घटोत्कच मोरवी को वरण करने के उद्देश्य से चल पड़े… रास्ते में अनेको नदियों, नालो, जंगलो, पहाड़ों, खूंखार राक्षसों, नर भक्षक, हिंसक एवं भयानक जानवरों को परास्त करता हुआ घटोत्कच कामकटंककटा के दिव्य प्रासाद (महल) के समीप पहुंचा…
महल के चारों ओर उपस्थित प्रहरी युवतियों ने सौम्य राजकुमार के पास आकार कहा -“हे भद्रपुरुष! तुम यहाँ क्यों आये हो? क्या तुम अपनी मृत्यु का वरण करने आये हो? क्या तुम्हे महल के द्वार पर लटकती हुई यह मुंड मालाये नहीं दिख रही? क्या तुम इन वंदनवारों में अपना शीश जड़वाना चाहते हो? तुम शीघ्र ही यहाँ से वापस लौट जाओ ओर अपने प्राणों की रक्षा करो…”
प्रहरी दैत्य बालाओं की बात सुनकर घटोत्कच ने कहा - “हे देवियों! मैं कायर पुरुष नहीं हूँ, जो तुम्हारे कहने से लौट जाऊं.. जाओ अपनी महारानी से कहो कि एक वीर पुरुष तुमसे भेंट करने आया है… वह तुमसे विवाह करना चाहता है…”
घटोत्कच की दृढ़ता को देखकर उन दैत्य बालाओं ने घटोत्कच को महल के अन्तः पुर में जाने हेतु मार्ग दे दिया… घटोत्कच महारानी कामकटंककटा (मोरवी) के समक्ष उपस्थित हो गए… मोरवी घटोत्कच के रूप एवं सौंदर्य को देख कर उस पर मुग्ध हो गयी… उसने माता कामाख्या को धन्यवाद दिया, कि क्या उसने इसी सुरवीर से विवाह करने हेतु उसे भगवान श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र से बचाया था… मोरवी ने सोचा यह तो कोई दिव्य पुरुष है, फिर भी वह उसकी परीक्षा लेने को उद्धयत हुई…
मोरवी ने घटोत्कच से अनेक प्रकार के प्रश्न पूछने प्रारंभ कर दिए… उसने कहा - “यहाँ आने के पूर्व क्या अपने मेरी प्रतिज्ञा के बारे में जाना? क्या आप अपने विवेक और बल से मुझे परास्त करने में स्वयं को सक्षम समझते है? क्या आपको अपने प्राणों का मोह नहीं है? क्या महल के प्रवेश द्वार पर अपने मुंडो की माला नहीं देखी? अब भी मैं तुमपर तरस खाती हूँ,तुम व्यर्थ में अपने प्राणों को मत गँवाओ, लौट जाओ…”
मोरवी की इस प्रकार की बाते सुन घटोत्कच ने कहा - “हे मृत्यु स्वरूप नारी! मैंने तुम्हारा सम्पूर्ण संविधान पढ़ लिया है… अब तुम शीघ्र ही अपने शास्त्र व शस्त्र रण कौशल हेतु तैयार हो जाओ…”
मोरवी ने प्रत्युत्तर दिया - “पहले तुम शास्त्र विद्या का कोई ऐसा प्रमाण दो, कि जिससे मुझे निरुत्तर कर सको…”
घटोत्कच ने कहा - “हे सुमति! किसी व्यक्ति के यहाँ उसकी पत्नी से एक कन्या ने जन्म लिया.. कन्या को जन्म देने के बाद वह चल बसी…कन्या के पिता ने उसे पालन पोषण कर बड़ा किया.. जब वह कन्या बड़ी हुई तो पिता की बुद्धि भ्रष्ट हो गई… वह अपनी पुत्री से बोला मैंने अज्ञात स्थान से लाकर तुम्हारा पालन पोषण किया है… अब तुम मुझसे अपना विवाह रचाकर मेरी कामना पूरी करो… सम्पूर्ण वृतांत से अनभिज्ञ वह कन्या उस व्यक्ति (अपने पिता) से विवाह कर लेती है… उनके संसर्ग से उन्हें एक कन्या की प्राप्ति होती है… अब हे सुभद्रे! तुम ही बताओ कि उनके संसर्ग से जन्मी वह कन्या उस नीच, अधम एवं कामी पुरुष की पुत्री हुई या दौहित्री?”
घटोत्कच का यह प्रश्न सुन मोरवी निरुत्तर हो गई…उसने आवेश में आकार स्वयं को निरुत्तर करने वाले को शस्त्र द्वारा परास्त करना चाहा और अपना खेटक उठाने का प्रयास किया… तभी वीर घटोत्कच ने मोरवी को अपनी बाँहों की